मैं और मेरा अहं


'तुम' पर तो 
बहुत सी पंक्तियां लिखी हैं मैने 
लेकिन आज नहीं...! 
आज तो बस मैं हूं
और 'मैं' ही लिखूंगा
क्योंकि 'मैं' तो
बस 'मैं' ही था
निरीह, मासूम, निश्छल, निष्कपट
लेकिन तुम्हारा अहं
मुझमे तलाशता रहा
छल, कपट, फरेब, बेइमानी
इनबाक्स ही नहीं
मेरा मनबाक्स भी भरा पडा है
तुम्हारी इन भावनाओं से
सच में...!
आज तो बस
मैं ही लिखूंगा
सुनने की फुर्सत कहां है..?
और
कहने का मलाल भी नहीं..!
समय की नदी के उस पार
हाथ मलते रहे तुम भी,
और
इस पार मै भी..!
बेशक
तुम इसे मेरा मैं (अहं) कह लो
लेकिन
सदियों से होता आया है यह
कि हम तलाशते हैं
बस उसे
जो कहीं होता ही नहीं..!
बस ऐक फरेब होता है..!
तुम पर तो
बहुत सी पंक्तियां लिखी हैं मैने
लेकिन आज नहीं ...!

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