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सोचो तो जरा?

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सोचो तो जरा?  आखिर किसके आधातों से  अक्सर निढाल होकर  ऐक शरीर भर रह जाता हूं मैं..! इस शरीर को- किसी लजीज गोश्त सा परोस दिया जाता है तुम सबके आगे और तुम सब अपनी अपनी रूचि का टुकडा चुन लेते हो बच्चे..! अपने लिये चुनते हैं कलेजे का हिस्सा, जबकि मां को भी चाहिये वही कलेजे के टुकडे आखिर तक उन्हें भी मिल ही जाते हैं कलेजे के कुछ बचे खुचे टुकडे, पत्नी चुनती है जांधो का टुकडा, दोस्तों के लिये इसमें से कोई भी हिस्सा चलेगा, लेकिन तुम..! तुम अपने लिये चुनते हो सिर्फ मगज के टुकडे, सिरामिक की प्लेट मे सजाकर कांटो की सहायता से उन्हें करीने से उठा उठाकर चबाना तुम्हे यही तो पसंद है, उस रोज प्लेट में सजे इन्ही मगज के टुकडों मे बच रही थी थोडी जान सो एक टुकडा प्लेट मे पडे-पडे कुलबुला क्या दिया कि हंगामा मच गया हाकिम केे रसोइये से लेकर वेटर तक को मिली जोरदार फटकार और हिदायत इतनी लापरवाही ठीक नहीं मिस्टर..! आइन्दा ठीक से पकना चाहिये..!! और मैं खुश हूं कि रक्तबीज सा.! फिर फिर जीवित होकर तुम सबके लिये तैयार होता हूं मैं ...! सोचो तो जरा? आखिर किसके आधातों से अक्सर मर कर ऐक शरीर भर रह जाता हूं मैं..?