परस्त्री गमन के लिये प्रेरित गाँधी जी
साफगोई एक ऐसा गुण जो बडी मुश्किल से देखने को मिलता है। मेरा मानना है कि गाँधी जी में जो साफगोई थी वही उन्हें महात्मा कहलाने के लिये पर्याप्त थी। 20 वर्ष का एक विवाहित नवयुवक अपनी पत्नी और दुधमुंहे बच्चे को छोडकर जब विलायत गया तो वहाँ के रहन सहन और जीवनशैली के प्रभाव मे परस्त्री गमन के लिये प्रेरित हुआ। सामाजिक प्रतिष्ठा को मटियामेट कर देने जैसे इस गंभीर विषय को भी गाँधी जी ने अपनी आत्मकथा में बेबाकी से लिखा था। यह साहस गाँधी जी ही कर सकते थे। उन्होने लिखा है- "......पर अब मेरी उम्र 20 साल की थी। मै गृहस्थाश्रम का ठीक ठाक अनुभव ले चुका था। मेरे विलायत निवास के आखिरी साल में पोर्टस्मथ में अन्नाहारियों का सम्मेलन हुआ। उसमें मुझे और एक हिन्दुस्तानी मित्र को निमंत्रित किया गया था। हम दोनो वहाँ पहुंचे हमें एक महिला के घर ठहराया गया था। पोर्टस्मथ खलासियों का बंदरगाह कहलाता है। वहाँ बहुतेरे घर दुराचारिणी स्त्रियों के होते हैं। वे सभी स्त्रियां वैश्या नहीं होती, और न ही निर्दोष ही होती हैं। ऐसे ही एक घर में हम टिके थे। रात हुई। हम भोजन के बाद ताश खेलने बैठे। बिलायत में अच्छे