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मार्च, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

#गउमाता_की_जै

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बचपन से जिन संस्कारों में पले उनमें घर में बनी पहली रोटी गउमाता के लिये निकालना एक आदत के रूप में शामिल रहा है। जब हमारी दादी जीवित थीं तो उनकी गोसेवा की चर्चा गांव घर की सामाऐं लांघ कर दूर दूर तक फैली रहती थीं। पिछली किसी पोस्ट में इससे जुडा ऐक किस्सा सुनाया भी था जब गाय का एक उदण्ड बछडा उनकी गोदी में चढने की जिद करता हुआ इस तरह आगे बढा कि दादीजी का पांव फ्रैक्चर हो गया था। इसके बावजूद दादी जी की गोसेवा अबाध गति से जारी रही थी ।   दादी जी तो नहीं रही लेकिन उनके किस्से और उनकी दी हुयी सीख आज भी हमारे परिवार की परंपरा हैं। इस परंपरा का निर्वहन जैसे अब हमारे घर की सबसे बुजुर्ग सदस्य माता जी कन्धों पर आ गयी है। रात के भोजन में बनी पहली रोटी सुबह उठकर सबसे पहले गाय को खिलाने के बाद ही उनकी दिनचर्या प्रारंभ होती है।   दो दिन पहले होली वाले दिन भी वो अपने इसी उपक्रम को पूरा करने के लिये वो उठीं और गाय को रोटी खिलाने के लिये घर से बाहर निकलीं तो सामने से दौडकर आ रही गाय को देखकर उत्साहित हो गयीं। दौडकर आती गौमाता के पास आने पर उन्हें भान हुआ कि वह गाय तो बदहवास भागी आ रही