गुरू गोरक्षनाथजी के जन्म के सम्बन्ध में चर्चा



दुर्गापूजा मोहर्रम समारोहों की व्यस्तता समाप्त होने से पहले ही हमारे सांसद श्री राहुल गांधी जी का तीन दिवसीय अमेठी दौरा आ गया था और अब दो दिन बाद हमारे माननीय मुख्यमंत्री जी का जनपद अमेठी आने का कार्यक्रम नियत हो गया है इसलिये व्यस्तता का आकलन आप स्वयं कर सकते हैं। 

इस बीच यह किंवदंती भी सुनी है कि माननीय मुख्यमंत्री जी जिस गोरक्षनाथपीठ के पीठेश्वर हैं उन आदि श्री गोरक्षनाथजी का जन्म स्थान यहीं कहीं जायस कस्बे में स्थित है।
समयानुसार उस स्थल की भी पडताल करूंगा आज उन आदि गुरू गोरक्षनाथजी के जन्म के सम्बन्ध में चर्चा करना चाहता हूं। 
गोरक्षनाथ के जन्मकाल पर विद्वानों में मतभेद हैं। राहुल सांकृत्यायन इनका जन्मकाल 845 ई. से 1300ई. के मध्य का मानते हैं। नाथ परम्परा की शुरुआत बहुत प्राचीन रही है, किंतु गोरखनाथ से इस परम्परा को सुव्यवस्थित विस्तार मिला। गोरखनाथ के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ थे। दोनों को चौरासी सिद्धों में प्रमुख माना जाता है।
गुरु गोरखनाथ के जन्म के विषय में जन मानस में एक किंम्बदन्ती प्रचलित है , जो कहती है कि गोरखनाथ ने सामान्य मानव के समान किसी माता के गर्भ से जन्म नहीं लिया था । वे गुरु मत्स्येन्द्रनाथ के मानस पुत्र थे । वे उनके शिष्य भी थे । एक बार भिक्षाटन के क्रम में गुरु गुरु मत्स्येन्द्रनाथ किसी गाँव में गये । कहा जाता है यह गांव जायस ही था। किसी एक घर में भिक्षा के लिये आवाज लगाने पर गृह स्वामिनी ने भिक्षा देकर आशीर्वाद में पुत्र की याचना की । गुरु मत्स्येन्द्रनाथ सिद्ध तो थे ही, उनका हृदय दया ओर करुणामय भी था। अतः गृह स्वामिनी की याचना स्वीकार करते हुए उनने पुत्र का आशीर्वाद दिया और एक चुटकी भर भभूत देते हुए कहा कि यथासमय वे माता बनेंगी । उनके एक महा तेजस्वी पुत्र होगा जिसकी ख्याति दिगदिगन्त तक फैलेगी ।
आशीर्वाद देकर गुरु मत्स्येन्द्रनाथ अपने देशाटन के क्रम में आगे बढ़ गये । बारह वर्ष बीतने के बाद गुरु मत्स्येन्द्रनाथ उसी ग्राम में पुनः आये । कुछ भी नहीं बदला था । गाँव वैसा ही था । गुरु का भिक्षाटन का क्रम अब भी जारी था । जिस गृह स्वामिनी को अपनी पिछली यात्रा में गुरु ने आशीर्वाद दिया था , उसके घर के पास आने पर गुरु को बालक का स्मरण हो आया । उन्होने घर में आवाज लगाई । वही गृह स्वामिनी पुनः भिक्षा देने के लिये प्रस्तुत हुई । गुरु ने बालक के विषय में पूछा । गृहस्वामिनी कुछ देर तो चुप रही, परंतु सच बताने के अलावा उपाय न था । उसने तनिक लज्जा, थोड़े संकोच के साथ सबकुछ सच सच बतला दिया । हुआ यह था कि गुरु मत्स्येन्द्रनाथ से आशीर्वाद प्राप्ति के पश्चात उसका दुर्भाग्य जाग गया था । पास पड़ोस की स्त्रियों ने राह चलते ऐसे किसी साधु पर विश्वास करने के लिये उसकी खूब खिल्ली उड़ाई थी । उसमें भी कुछ कुछ अविश्वास जागा था , और उसने गुरु प्रदत्त भभूति का निरादर कर खाया नहीं था । उसने भभूति को पास के गोबर गढ़े में फेंक दिया था । गुरु मत्स्येन्द्रनाथ तो सिद्ध महात्मा थे ही, ध्यानबल से उनने सब कुछ जान लिया । वे गोबर गढ़े के पास गये और उन्होने बालक को पुकारा । उनके बुलावे पर एक बारह वर्ष का तीखे नाक नक्श, उच्च ललाट एवं आकर्षण की प्रतिमूर्ति स्वस्थ बच्चा गुरु के सामने आ खड़ा हुआ ।
गुरु मत्स्येन्द्रनाथ बच्चे को लेकर चले गये । यही बच्चा आगे चलकर गुरु गोरखनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
यह तो हुयी एक किंवदंती। इन श्री गोरखनाथ जी के जन्म की एक और कथा से कल ही रूबरू हुआ जो मुझे इस जायस कस्बे के शायर श्री फलक जायसी जी ने तब सुनाई जब कल मैं जुम्मे की नमाज के दौरान जायस की जामा मस्जिद के आसपास विखरे पडे राजाप्रसादों के भग्नावशेषों का चित्र बटोरते हुये विचार कर रहा था कि जिस कस्बे के चप्पे चप्पे से ऐतिहासिकता झलकती हो उसे भारतीय पुरातत्व विभाग ने अपनी संरक्षण सूची में क्यों नही शामिल किया ? 
बहरहाल अगली पोस्ट में सुनात हूं श्री फलक जासयी द्वारा सुनाई गयी दंतकथा।

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