मेरी आशंका निर्मूल नहीं थी....!


कल मैंने विनोबा भावे के प्रति राजस्व प्रशिक्षण संस्थानों की उदासीनता का बिंदु उठाया था।
भूदान आंदोलन के प्रणेता और संत विनोबा भावे जी जयंती के अवसर पर कल मैंने अपने कार्यालय में उनके चित्र पर माल्यार्पण के बाद ही सामान्य कार्यालयीय दिनचर्या का आरम्भ किया।
साथ ही साथ दिन में आने वाले प्रबुद्ध आगंतुकों को भी संत के चित्र पर पुष्पांजलि के लिए प्रेरित करता रहा।इसी कड़ी में बार ऐसोसिएशन के सम्मानित अध्यक्ष जी भी आये और एक आज्ञाकारी शिष्य की तरह पुष्पांजलि अर्पित करने के अनुरोध का अनुपालन करने के उपरान्त सामने बैठ गए। जिस उद्देश्य के लिए थे उस पर चर्चा के उपरान्त अनायास पूछ बैठे--
"ये जिन सज्जन के चित्र पर आपने माल्यार्पण कराया वो आप गुरूजी है क्या..?"
प्रश्न का उत्तर देने के स्थान पर मैंने भी प्रश्न ही पुंछ लिया-
"नहीं..! लेकिन क्या आप इस चित्र वाले सज्जन को पहचानते हैं न..?"
उनका जवाब नकारात्मक था। बोले-
"नहीं तो ..! मैं समझ रहा था कि ये आपके पारिवारिक ईष्ट गुरु होंगे तभी आप इनका इतना सम्मान कर रहे हैं..!"
मैं कुछ पल के लिए निःशब्द हो गया, फिर बताया-
"नहीं अध्यक्ष जी ..! ये सिर्फ मेरे ही गुरु ही नहीं है अपितु देश में लागू भूमि संबंधी कानूनों में सर्वहारा वर्ग को भूमि आबंटित कराने वाले कानून के जनक हैं..। इसलिए कमोबेश ये उन सभी के आध्यात्मिक गुरु हैं जो भूमि संबंधी मामलों से जुड़े हैं.."
इसके बाद मैंने संत विनोवा के भूदान आंदोलन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर संक्षिप्त वक्तव्य देकर उनकी जानकारी अद्यतन की।
अध्यक्ष जी के कक्ष से बाहर चले जाने के बाद सोचने लगा जब बार एशोसिएशन के अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पदों पर निर्वाचित प्रबुद्ध लोग भी विनोवा भावे जी के कृतित्व से अनविज्ञ हैं तो सदनों में निर्वाचित होने वाले राजनेताओं से इनके बारे में विज्ञ होने की उम्मीद करना सचमुच बेमानी है।
...वैसे सामान्य ज्ञान बढ़रोत्री हेतु बताना चाहूँगा कि संत विनोबा द्वारा भूदान में अर्जित भूमि के व्यवस्थापन हेतु आज भी प्रदेश में भूआबंटन समिति विद्यमान है जिसके पदेन अध्यक्ष माननीय राजस्व मंत्री होते हैं तथा पदेन सचिव और सदस्यगण राजस्व विभाग में तैनात वरिष्ट अधिकारीगण..!
भूमि आबंटन सुधार के प्रणेता संत को पुनः नमन..!!
काश....! विनोबा जी की भी कोई जातीय पहचान होती....!!
.... तो शायद स्थिति कुछ और होती.....काश....!

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